धोरे का इतिवृत्त


बसंत पंचमी (शनिवार) संवत् 2017 (ईस्वी सन 1961) को  श्री बजरंग धोरा की स्थापना बाबा रामचंद्र जी महाराज द्वारा की गई। इससे पूर्व मास्टर जी रामचंद्र जी दाधीच पूगल गाँव बीकानेर से 80 किमी दूर पर रहते थे। उस समय किसी कारणवश पूगल त्यागकर जस्सूसर गेट बीकानेर आए। फिर एक हनुमान जी का मंदिर वहीं पर स्थापित किया। जो वर्तमान में माहेश्वरी सदन के पस है। कुछ समय पश्चात उनका किसी बात को लेकर कुछ स्थानीय लोगों से मतभेद होने पर वे उस स्थान को छोड़कर वे बीकानेर से उत्तर की और स्थित धोरों में भ्रमण करने लगे। फिर देवाज्ञा के अनुसार एक टीले पर मंदिर बना कर साधना में रत हो गए।
23 वर्ष तक इस मंदिर परिसर में बाबा जी रहे तथा यहीं उनका देहांत हुआ। यह मंदिर जब बना तो यहां पहुंचने का कोई सुगम मार्ग न था तथा इन दिनों जहां रेलवे समपार फाटक है वहां पर रेल लाइन के पास से गुजरते हुए पगडंडी से इस टीले (धोरे) पर कुछ भक्त गण पहुंच ही जाते थे। जैसे-जैसे लोगों को धोरे पर मंदिर तथा बाबा जी के बारे में पता चलने लगा और भी भक्त गण पहुंचने लगे तथा कच्चा रास्ता रेलवे लाइन तक (लगभग 2 किमी ) बनाया गया। मंगलवार तथा शनिवार एवं चैत्र पूर्णिमा व आसोज पूर्णिमा को उस वक्त भी जागरण तथा मेला लगने लगा था। फिर जैसे-जैसे भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती गई, संख्या भी बढ़ने लगी तथा वैसे-वैसे मंदिर परिसर का विस्तार होता गया। आरंभ में एक छोटी सी कुटिया तथा एक पानी की टंकी बनी। फिर राधा किशन चांडक जस्सूसर गेट निवासी ने निज मंदिर का निर्माण कराया। उसके बाद संवत् 2020 में राम प्रताप बिहाणी जस्सूसर गेट ने एक पानी के कुंड का निर्माण कराया। फिर 2030 में जीवन लाल जी राठी ने पुत्र प्राप्ति पर एक बड़ा कक्ष बनाया जहां पर भक्त जन बैठ कर भजन सत्संग करने लगे। फिर संवत् 2039 में नोखा के गोपीकिशन तापड़िया ने लिंक रोड से बजरंग धोरा तक की पथरीली सड़क का निर्माण कराया। 
तदोपरांत संवत् 2044 में बाबा जी के एक शिष्य नंदू महाराज बाला जी की कृपा से विधायक बने तो उन्होंने अपने गुरु के स्थान पर पक्की सड़क व 100 गुणा 100 फुट की सत्संग चौपाल का निर्माण कराया। सन् 1996 में ऊँट उत्सव का आयोजन भी इसी स्थान पर हुआ जिससे यहां की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई। इस तरह बजरंग धोरा विश्व मानचित्र पर पहचाना गया। इसके बाद 6 दिसंबर 2004 को इसका पुनर्निर्माण कार्य आरंभ हुआ। उस समय पैसे के अभाव को देखते हुए निज मंदिर को ही विस्तार देने का सोचा गया लेकिन जैसे-जैसे निर्माण कार्य आगे बढ़ा बाला जी कृपा से निरंतर चलता रहा तथा निज मंदिर हॉल, प्याऊ, अखंड धूणा, सवा मणी हॉल, साथ में चौक 100 गुणा 80, मंच तथा 100 गुणा 30 का टीन का छपरा, 30 गुणा साठ निज मंदिर बन चुका है। धोरे के चारों तरफ सड़क, पानी की खेली तथा हजारों की संख्या में पेड़ पौधे लगाने का काम हुआ तथा सांसद श्री अर्जुन राम जी द्वारा पार्किंग का कार्य भी करवाया गया। अब मंदिर के समानांतर भूमि पर पक्का फर्श बन चुका है तथा नया प्याऊ भी बन गया है।
इसी तरह शारीरिक रुप से विकल लोगों की सुविधा के लिए सीढ़ियों के साथ समतल रैंप का निर्माण  भी किया गया है तथा व्हील चेयर की व्यवस्था भी मंदिर परिसर में की गई है। बीकानेर के सांसद एवं माननीय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल के प्रयास से नलकूप कुएँ की व्यवस्था भी बजरंग धोरा क्षेत्र में हुई है। इसी प्रकार जन सहयोग से मंदिर के पास छत युक्त हॉल, बैठने के लिए बैंचों, विद्युत जनरेटर तथा शौचालय निर्माण भी हो चुका है। उद्यान के लिए भी कार्य आरंभ हो गया है।

मंदिर परिसर में लगे दर्जनों ध्वज लहराते रहते हैं तथा धीमी-धीमी मधुर आवाज में भजनों का प्रसारण यहां के वातावरण को और भी सुरम्य व भाव युक्त बना देता है।

यह दक्षिणमुखी मंदिर है तथा बाला जी के दाएं हाथ में संजीवनी बूटी का पर्वत लिए मूर्ति है तथा परंपरागत कपड़े की अंगी प्रतिदिन बदली जाती है। चैत्र पूर्णिमा को विशेष शृंगार के साथ बूंदी महाप्रसाद का आयोजन होता है तथा शरद् पूर्णिमा को मध्य रात्रि में विशेष आरती के बाद खीर प्रसाद का वितरण किया जाता है। वसंत पंचमी व गुरु पूर्णिमा तथा 31 दिसंबर को भजन संध्या के साथ प्रसाद वितरण होता है। भक्तों की मनोकामना पूर्ण के साथ सुंदर कांड व सवा मणि का निरंतर आयोजन होते रहते हैं।

मुख्य कक्ष में प्रवेश करते ही भित्ति चित्र में पूरी रामायण का वर्णन है तथा धार्मिक पुस्तकों व आरती भजन संग्रहों को भी यहां रखा गया है। सुंदर लाल कालीन पर बैठकर भक्तगण अपनी पसंद की धार्मिक पुस्तक या भजन आरती संग्रह का आनंद लेते हैं।कुछ भक्त मौन के सुरों में बाला जी का सिमरन करते हैं तो कोई मंद-मंद गीत गुनगुना लेते हैं।

कीड़ी नगरा भी परंपरागत रूप से अमावस्या के दिन भक्त गण  धोरे के आस पास बने विशाल कीड़ी नगर को सींचने आते हैं।  
  
आगे की योजनाओं में गौ शाला, वानप्रस्थाश्रम, जड़ी बूटियों के पौधे विकसित करना सम्मिलित किए गए हैं।